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गजल: जलेश्वरी वस्त्रकार

विषय-आज रिश्तों में जमीं बर्फ पिघलते देखा है

पानी बन आँखों से अश्क निकलते देखा है।
आज रिश्तों में जमीं बर्फ पिघलते देखा है ।।
शरारत भरी आँचल में सिमट गई शराफत ।
कसम से मोहब्बत में वफा मिटते देखा है ।।
नाजुके इश्क मेहर मरहम मरम्मत को तरसे ।
कटि पतंग सा आशमां में बिखरते देखा है ।।
जलालत भरी निगाहों में शोला भड़क रही ।
काबिले तारीफ शबनमी शमां को जलते देखा ।।
हर वक्त हो रही बेआबरू सराय कौम अमानत ।
अमानत को खयानत में जलेश बदलते देखा है।।
जहन्नुम में भी जगह न दे खुदा नापाक इरादों को।
ऐ खुदा बख्श दो दुआ को नजर उठते देखा है ।।


-जलेश्वरी वस्त्रकार जयरामनगर बिलासपुर छत्तीसगढ

Daily Hukumnama Sahib

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