एकाएक हम ही बौने हुए हैं ।
शराफत में औने -पौने हुए हैं ।

दिन-रात बस यही मंथन किया करूॅं
बिन बात ही क्यूॅं ? यूॅं आहें भरा करूॅं
करते दगाबाजी मिलकर अपने ही
विश्वास न जमें है किसपर ? सिला करूॅं
अजी टेन्ट के हम भगौने हुए हैं ।। शराफत में औने -पौने——

कैसे ? कहो ? रेह में बीज बोऊॅं
सूखी नदी में भला नाव खेऊॅं
परिजन सभी आंकते हैं अनर्रा
चाहें आगे करूॅं मीऊॅं-मीऊॅं
सभी के लिए हम डिठौने हुए हैं ।। शराफत में औने -पौने——

कभी जो रहे एक ही राह चलते
कभी इक ही घाट थे पानी पीते
वही अब हिसाबी – किताबी बने हैं
अलग उनकी दुनियाॅं हैं अलग जीते
अब उनके लिए हम घिनौने हुए हैं ।। शराफत में औने -पौने——

एकाएक हम ही बौने हुए हैं ।
शराफत में औने -पौने हुए हैं ।।

         ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी
                       8707689016