मेरी गजल में न रद्दोबदल की बात की बात करो,
ग़ज़ल पे हो रहे रद्दे अमल की बात करो।

घरों पे हो रहे कब्जे अभी भी जारी हैं,
हुआ है आज जो उस बेदखल की बात करो।

तलाशे रिज्क ने बस्ती उजड़ गई यारों,
शहर में हो रहे चहल व पहल की बात करो।

ये शर्त है नहीं पैसे से खुश रहें मां बाप,
जो तुम पे फर्ज़ है उस सेवा टहल की बात करो।

तबाह हो गया सैलाब में मेरा सब कुछ,
दबाव हम पे है तुम अच्छी फसल की बात करो।

हुजूर ने जो कह दिया उसे ही सच मानो,
अकल को छोड़ो अब उनके शगल की बात करो।

सरों को काट के कैसे सुकूं मिलेगा तुम्हे,
सुकूं को खोजो, न जंगो जदल की बात करो।

अरुण थकान पे थोड़ा उदास तुम क्यों हो,
गुजर चुकी है जो शामे गजल की बात करो।

अरुण कुमार श्रीवास्तव, गोरखपुर