समानुभूति की कथा कहूं
सम भाव को समझ में जाऊं
पर पीड़ा को समझो बेहतर
हर्ष को भी समझो हंसकर
भाव जीवन का सार है
वरना जीवन बेकार है
हर भाव का पुतला है नर
भाव को
सहजता से समझे ईश्वर
अंतर मन को जो छू लिया
समानुभूति को वह समझ गया
भाव के बिना सुना है संसार
भाव नहीं तो जीवन है बेकार
प्रेम को समझे पशु और पक्षी
प्रेम का अनंत विशाल रूप देखी
गोपीजन मीरा और श्री
राधा
प्रेम पर रखते हर कोई श्रद्धा
गर पीड़ा हो तुम्हें तो अनुभव हो मुझे
समानुभूति तो कहते हैं इसे
सहानुभूति से बढ़कर है यह
समानुभूति की बात जो कहे
संसार होगा सुंदर मनभावन
समानुभूति का जो होगा आगमन
जन-जन के मन की बात है
समानुभूति तो एक सौगात है
जब समझेगा नश्वर मानव
दूर होगा तब ईर्ष्या का दानव
स्वार्थ, हिंसा, क्रोध,होंगे दूर
मानवता होगी खुशियों से भरपूर
आओ समानुभूति का प्रयोग करें
मानवीय मूल्यों को हम मन में धरें
फिर प्रकृति माता जीवन के गीत जाएगी
इस धरा पर
चहूं और खुशहाली छा जाएगी
नाहिदा शाहीन
ओडिशा
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