शीत ऋतु का मौसम आया अब मैं माह दिसम्बर हूं,
गर्म कपड़ों को जीवन देता नहिं कोई आडम्बर हूं।

अति वर्षा से राहत देने मैं त्राता बन आया हूं,
कम्बल,रजाई,सूट-बूट सब साथ अपने ले आया हूं।

चाय और काफ़ी की बन आई,शीतल पेय सकुचाय रहे,
दही की लस्सी कौन पूंछता मुझको वो गरियाय रहे।

दिन सिकुड़ कर हुआ है छोटा मैं रक्षा‌ उसकी करता हूं,
सिकुड़ सिकुड़ कर बीत न जाये मैं यह वादा करता हूं।

ग्रीष्म ऋतु मे सूर्य देव ने ताण्डव ख़ूब‌ दिखाया था,
सारे‌ दिन तब गर्म हवा ने कमाल अपना‌ दिखलाया था।

आ कर मैंने सूर्य देव का भी मान बढ़ाया है,
पशु-पक्षी मानव को भी तो धूप वास्ते तरसाया है।

प्रकृति ने भी मेरे स्वागत में अनुपम छटा बिखराई है,
गैन्दा,पैन्ज़ी आदि फूलों ने प्रकृति की साज सजाई‌है।

रंग-बिरंगे फूलों से धरती का आंगन‌ महक रहा,
बाजरा- मक्का आदि अनाज से वातावरण भी‌ महक‌ रहा।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़