मृत सभ्यताओं से प्रेरणा क्यों तुम लेते हो?
भुजाओं में बल है अगर
तो अपनी सामर्थ्य से
निर्माण का नवीन इतिहास क्यों नहीं रचते हो?
मृतकों की गली में
चलते हो क्यों भिक्षा का थाल लिए ?
रणभूमि में लढते क्यों नहीं
हाथों में ढाल- तलवार लिए?

सो क्यों जाते हो काया में छाया सा?
गभीर नींद में धुंधली सी ख्वाब सा?
उठते क्यों नहीं सशक्त ऊर्जा से
धरती की उर चिरती, नवीन कपोल जैसा
प्राची क्षितिज की गोद से जगती
नवुन अरुण जैसा?!!

गाते हो ब्यथित संगीत
गाते क्यूँ नहीं जागरण गीत?
हाहाकार से इतना लगाव क्यूँ
ललकार से क्यूँ नहीं प्रीत?

ख़ाक के फ़िक्र में कितने शाम काट दिए
ख्वाब के फ़क्र में एक सुबह क्यूँ नहीं?
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जिनातमाम दर्जी
ओड़िशा
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