मिलते रिस्ते एक हज़ार
यदि दौलत शोहरत हो पास
नही पूछता है कोई उनको
जो होते है धन से लाचार
लोभी लम्पट औ व्यभिचारी
इनको दौड़े जनता सारी
नही पूछता है कोई उनको
जो होते अच्छे सदाचारी
माथे पर लम्बा तिलक लगा हो
चुटीया दादी लम्बी लम्बी हो
दस पांच ठो चेला पाले हो
ऐसे होते बड़े पुजारी
छोटा सा कोई मंदिर हो
दिन रात आरती करता हो
नही पूछता कोई उसको
जिसको प्रसाद की लाचारी हो
मंदिर मे घंटा चढ़ा के आये
उस पर अपना नाम लिखा के आये
नही पूछता कोई उनको
बेबस घर की अम्मा की लाचारी
स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
रचनाकार
उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम”
लखनऊ
उत्तर प्रदेश