तुम मेरा मान हो मेरा सम्मान हो
मेरे सबसे बड़ा तुम अभिमान हो
या यु कहे तुम जब से आये हो
तुम मेरे घर पर ऊपर कुर्बांन हो ।।

आई थी तुम मेरे घर बड़े शान से
आके बैठ गई चूल्हे की आँच मे
बनाया खिलाया बर्तन धोये जतन से
मिला तुमको दर्जा बहू का उपहार मे ।।

हर काम सभाले तुमने बड़े ध्यान से
किया घर का हर काम बड़े ज्ञान से
माँ बाबू बूढ़े थे भाई बहन छोटे थे
सबको सभाला तुमने बड़े सम्मान से ।।

मेरे कुल को आगे बढ़ाने मे
तुमने पाला बच्चे को कोख मे
दिया जिस दिन जन्म बच्चे को
मै बहुत खुश हुआ अभिमान से ।।

तुमने दी मेरी पहचान मेरे नाम से
घर भर को खुशियाँ मिली मान से
लोग मुझको और तुमको जानते है
अभिषेख के पापा मम्मी के नाम से

खो दी अपने मायके की पहचान को
समर्पित कर दिया तुमने अपने को
भुला कर अपने माँ बाप के लाड को
कर दिया अर्पण खुद को मेरे परिवार को

स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित है।
रचनाकार
उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम”
लखनऊ
उत्तर प्रदेश
भारत