ये तेरा चहकना महकना भी क्या बात है
तुझसे मिल कर बाते करना भी क्या बात है
अरे ज़रा गौर से तो देखो हमको पास आके
छुप छुप के हमको देखना भी क्या बात है ।।
मिली थी तुम हमको जब इस कालेज मे
खत छुपा कर रख देते थे तेरी किताबों मे
पन्ने पलटती रहती थी किताबों के खत के लिए
छुपा के रख लेती थी खत को पढ़ती थी रातो मे ।।
फिर वही हरकते फिर वही हया वही शर्म
इन्ही अदाओ पर फ़िदा हुए थे तुम पर हम
अब तो आके कुछ बाते कर लो हमसे
न जाने फिर कब मिले कहा मिले हम और तुम ।।
आखिरी साल है इस कालेज मे पढ़ाई का
आखिरी साल है हम दोनो की मुलाकातों का
यहां की यादे सताएंगी हम दोनो को रोज
कभी किताब पेन को मागने के बहाने का ।।
स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित है ।
रचनाकार
उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “
लखनऊ
उत्तर प्रदेश
भारत