आंखों आंखों में ही जाने , क्या ? इशारे कर गये ।
शाम को कूॅंचाह में आये , क्या ? इशारे कर गये ।।

कॅंपकताते होंठ लरजे , गजब की मस्ती दिखे है ।
मदहोशी यूॅं बढ़ती जाये , क्या ? इशारे कर गये ।।

वक्त बतलाये असल में , कौन अपना ? कौन सपना ?
बेचारगी दुनियाॅं घुमाये , क्या ? इशारे कर गये ।।

हारना फिर जीत जाना , जीत कर भी हार जाना ।
संघर्ष ही हिम्मत बढ़ाए क्या ? इशारे कर गये ।।

आहटें तूफान की जो , भाॅंप लेते दूर से ही ।
हौसला शम्मा जलाये , क्या ? इशारे कर गये ।।

नेह का सावन पुकारे , लौट आओ लौट आओ ।
प्रीत अपना घर बसाये , क्या ? इशारे कर गये ।।

झर रहा “मधुरस” हमारे, चारों ओर, हाॅं झर रहा ।
है प्यास अन्दर की बुझाये , क्या ? इशारे कर रहा ।।

                   ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी
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