ये जिंदगी हर मोड़ पर मेरा ही मजाक बनाती रही,
न जाने क्यूं,हर दिन,हर पल मुझे ही तड़पती रही।

ऐ जिन्दगी बता हर बार मेरा ही इम्तिहान क्यों लेती है,
हर बार मेरे ही घर को सैलाब से क्यों भिंगोती है।।

ऐ जिन्दगी, मैं गरीब हूं, परेशान हूं, बहुत मजबूर हूं,
मैं सपनों में जन्मा हुआ एक ऐसा गुरुर हूं।।

कुछ नहीं है सिर्फ मेरे पास अभियान बचा है,
लेकिन मेरा मन निर्मल और सबसे सच्चा है।।

मैं झूठ बोलना, झूठी तारीफ करना नहीं जानता हूं,
मैं अपने मां-बाप को ही अपना भगवान मानता हूं।।

मैं हमेशा अमीर बनने का सपना देखता हूं,
मैं झूठी तवे पर अपनी रोटी नहीं सेंकता हूं।।

न मेरे पास रोटी है, न घर है,न मेरे पास मकान है,
फिर भी मेरे सच्चे मन में बसता भगवान है।।

हमने कभी अच्छे फल नहीं खाए होंगे अपने जीवन में,
लेकिन मैं हमेशा उगाता रहता हूं सपनों के उपवन में।।

क्या करूं दिन रात मेहनत दो पैसे करके कमाता हूं,
खुशी है एक छोटा सा परिवार है उसको चलाता हूं।।

जब भी मैं काम करके शाम को अपने घर वापस आता हूं,
आंगन में बच्चों की किलकारी सुन मैं मस्त हो जाता हूं।।

मिट्टी की दीवार थी जो पूर्णता ढह चुकी है,
जो बारिशों की मार को बहुत बार सा चुकी है।।

अपनी कहानी को बस मैं यहीं आराम देता हूं,
कलम आगे कुछ और लिखेगी अभी विराम देता हूं।।

स्वरचित कविता
प्रभात राजपूत “राज” गोंडवी
गोंडा-उत्तर प्रदेश