
जब आओगी मुझसे मिलने
तो मिलवाउंगा तुम्हे उस से
जिसने तुम्हारे जाने के बाद
बरसों मेरा ख्याल रखा
सुबह उठने से लेकर शाम तक
कभी किसी पल भी उसने मुझे तन्हा नही छोड़ा
जब उबने थकने लगा ज़िंदगी से
उसने मेरा हाथ थम कर मुझे सहारा दिया
उसे हाथो मे लेकर गर्मजोशी से भर जाता हूँ मैं
उसके साथ वक़्त कब बीत जाता है पता ही नही चलता
लोगो ने बहुत कहा के छोड़ दु उसे
पर अब तो उसकी लत सी लग गई है
उसके बिना सब खाली खाली लगता है
जब कोई नहीं था मेरे साथ
तब उसने बनाया मेरे साथ रिश्ता और निभाया भी
क्या कहूँ उसके बारे मे जितना भी कहूँ कम है
ऐसा लगता हैं कि वो दौड़ रही है
मेरी रगो मे लहू बन के
मेरे सांसो मे बसी है
उससे जुदा होना अब मुश्किल है
जब कभी आओगी तुम
तो मिलवाउंगा तुम्हे भी
उस चाय की प्याली से
सच कहता हूँ इक बार तुम
मिलोगी तो
तुम्हे भी लत लग जाएगी उसकी
वो है ही कुछ ऐसी अपनो जैसे
इक गरम चाय की प्याली : गुलाम