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विधा – प्रदीप छंद(16,13)
माँ सरस्वती विनती सुन लो, जिव्हा में अब आइए।
भरी पड़ी है बहुत कुविद्या,उर तम दूर भगाइए।
मन में ज्ञान प्रदीप जलाओ, जगमग उर उजियार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूंँ मांँ शारदे।
श्वेत वस्त्र कमलासन माता,नित्य ध्यान तेरा करूँ।
तेरे दर्शन का प्यासा मैं, चरण कमल तेरे धरूँ।
मधुर कंठ सुर-ताल विमल मति, हृदय ज्ञान भंडार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूँ माँ शारदे।
माघ शुक्ल में बसंत ऋतु की, पर्व पंचमी आ गई।
आम्र बौर मादक महुए की, सुगंध चहु दिशि छा गई।
भंँवरे कोयल सरिस मनुज को, मांँ उमंग उपहार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूंँ मांँ शारदे।
विद्या देवी तुम हो माता, वीणा पुस्तक धारिणी।
ज्ञानेश्वरी श्वेतांबरी माँ, लेखन दोष निवारिणी।
काव्य सृजन निर्दोष कला उर, छंद रस अलंकार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूंँ मांँ शारदे।
नष्ट करो अज्ञान तिमिर मांँ, मन में ज्ञानालोक दे।
पतन पाथ पल-पल मन जाए, पुत्र मानकर रोक दे।
सरस काव्य सब पंक्ति मधुर हो, नेक भाव मन सार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूंँ मांँ शारदे।
कुछ न जानता काव्य कला मैं, ज्ञान दायिनी ज्ञान दे।
साहित्य गगन का सूरज बन, चमकूँ मैं वरदान दे।
साहित्य सिंधु में डूब रहा, माता मुझे उभार दे।
हंस वाहिनी वीणापाणी, नमन करूंँ मांँ शारदे।
रचनाकार…..
रामकुमार पटेल मुड़पार जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़