⚘गोस्वामीतुलसीदासविरचित
(599) 🦜 श्रीरामचरितमानस
🏵—–अयोध्याकाण्ड—-🏵
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भरतहि होइ न राजमदु
बिधि हरि हर पद पाइ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि
छीरसिंधु बिनसाइ ।।
तिमेरूतरून तरनेहिमकु गिलई
गगनुमगन मकु मेघहिं मिलई।।
गोपद जल बूड़हिं घटजोनी ।
सहज छमा बरू छाड़ै छोनी ।।
मसक फूँक मकु मेरू उड़ाई ।
होइ न नृपमदु भरतहि भाई ।।
लखन तुम्हार सपथ पितु आना
सुचिसुबंधु नहिं भरत समाना।।
सगुनु खीरू अवगुन जलु ताता
मिलइ रचइ परपंचु बिधाता ।।
भरतु हंस रबिबंस तड़ागा ।
जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा
गहि गुन पय तजि अवगुन बारी
निजजसजगत कीन्हैउजिआरी
कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ ।
पेम पयोधि मगन रघुराऊ ।।
(क्रमशः आगे भी जारी)
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🙏प्रस्तुतकर्ता 🙏
नन्दलाल ऊमर, दक्षिण फाटक
( राजस्थान भवन के सामने ) ,
पानदरीबा बाजार के पास ,
मीरजापुर-231001(यू0पी0)
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