हमारी पीठ पर जितने भी वार हुए,
हमारे हौसलों के आगे सब बेकार हुए

जितने भी गिराए उन्होंने आग के शोले,
आखिर सब के सब ठंडे ठार हुए

हमारे सब्र का प्याला परखना चाहा उन्होंने,
हमारी खामोशियों से वो शर्मसार हुए

वो करते रहे हमारी खिलाफत बड़े शौक से,
हम जिनके लिए सदा मददगार हुए

पहले ही शक था उनके इरादों पे हमें,
जो हमारे सच बोलने से ही बेजार हुए

करते थे महफिल में जो बड़ी-बड़ी बातें,
जरा सी मुसीबत पड़ने पर सब फरार हुए

अब नजरें मिलाने से भी हिचकिचाते हैं वो,
कभी हम जिन के लिए फूलों का हार हुए….

🌟🌟 परमजीत लाली 🌟🌟
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