"माँ, राक्षस कैसे होते थे"? रिंकू ने सवाल किया।
"राक्षस के बारे में अचानक से तू क्यों पूछ रहा है?" बरामदे में आराम- कुर्सी पर बैठी सुगना ने नन्हे रिंकू के माथे को सहलाते हुए कहा।
"कल मंदिर में पंडित जी प्रवचन देते हुए कह रहे थे कि सतयुग में भगवान राम ने राक्षसों को वन में मार भगाया था... बताओ न मांँ, राक्षस की शक्ल कैसी होती थी"? रिंकू ने सुगना का आंँचल खींचते हुए पुनः सवाल किया।
"राक्षस डरावने दिखाई देते थे।उनके हाथों में तलवार होती थी। वे बहुत निष्ठुर होते थे, उनमें दया-धर्म नहीं होता था।वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते थे। दीन-दुखियों पर अत्याचार करते थे।वन में वे ऋषि-मुनियों की कुटिया तहस-नहस कर देते थे। सुगना ने नन्हे रिंकू को समझाया।
"बाप रे!! तब तो राक्षस बड़े खतरनाक होते थे " रिंकू ने अपनी आंँखें गोल-गोल घुमाते हुए कहा।
"अगर राक्षस आ जाएं तो हमें क्या करना चाहिए"? रिंकू ने पुनः सवाल किया।
" हम भला क्या कर सकते हैं? हमें तो राक्षस देखते ही भाग जाना चाहिए"...सुगना ने अपनी समझ अनुसार बेटे को व्यवहारिकता सिखाई।
तभी दूर से हाथ में हाकी स्टिक लिए तोड़फोड़, हिंसा एवं उत्पात मचाते दंगाइयों का झुंड आता दिखाई दिया। सुगना जल्दी से रिंकू को लेकर घर में घुस गई और दरवाजा बंद कर दिया।
।। समाप्त। ।
स्वरचित एवं मौलिक
संध्या प्रकाश
राँची
Email : greatsandhya15@gmail.com