बिहार का रहने वाला एक १८ वर्षीय युवा मुश्किल से १०वी पास, चार बहन भाइयों में सबसे छोटा, कुछ करने के लिए अपने माँ बाप को बिना बतायें दिल्ली आ जाता हैं.काम की तलाश में इधर उधर घूमता हैं, दिहाड़ी पर एक कंप्यूटर सही करने वाले के यहाँ नौकरी करनी शुरू कर दी.दिन में काम रात में कंप्यूटर भाषा सीखता था.काम करते-करते उसने एक छोटी सी वेबसाइट बना ली.अपने मालिक को दिखाई, मालिक उसके काम से बहुत प्रभावित हुए, उसके इस काम को देख कर उसको कई और ज़िम्मेदारी दे दी जिसको उसने बहुत अच्छे से निभाया और साथ ही साथ एक और वेबसाइट पर काम करना शुरू कर दिया.ये वेबसाइट बहुत अच्छी बनी थी क़रीब २ साल बाद यह वेबसाइट २ करोड़ में बेच दी.उसके बाद पीछे मुड कर नहीं देखा, दिल्ली में एक सुंदर सा मकान ख़रीद लिया और एक कंप्यूटर इंजीनियर महिला से शादी कर ली. उसकी पत्नी को नेटवर्किंग में काम करना अच्छा लगता था.धीरे-धीरे उन्होंने नेटवर्किंग के साथ-साथ एक कम्पनी भी बना ली, जिसमें क़रीब १४-१५ लोग काम करते थे.लगभग १० लोग उनके साथ नेटवर्किंग में थे. व्यापार दिन दुगना रात चौगुना होता गया.१० वी पास युवा आज स्थापित बिज़नेस मैन था, समाज में एक मुक़ाम था,सुंदर सा मकान कई लक्ज़री गाड़ियाँ, अपने संघर्ष के दिनों को बताते हुए उसने बताया की सुबह का नाश्ता १०-११ बजे और दोपहरी का ख़ाना क़रीब ६-७ बजे ख़ाना ये सोच कर रात को ख़ाना न पड़े कई साल तक मकान न होने से बस स्टैंड पर सोना कभी कभी पुल के पिलर के साथ रात गुजरता था.लेकिन बस एक ही जनून था किसी तरह कंप्यूटर सीख कर एक अच्छी सी वेबसाइट बनानी हैं.लेकिन मुझे नहीं पता था मेरी मेहनत मुझे एक दिन सफल बिज़नेस मैन बना देगीं और साथ में ये भी कहना चाहूँगा मेरी पत्नी की मेहनत ने भी मेरे जीवन को सफल बनाया हमेशा मेरे काम में हाथ बटाया ….उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे, अपने माता पिता व बहन और भाइयों की भी बहुत याद आती थी. क़रीब २० साल बाद अपने परिवार से मिलने गया.माता पिता व परिवार के सब लोगों को देख कर बड़ा ही दुख हुआ हालत पहले से भी ज़्यादा ख़राब थे …. अचानक से मुझे देख कर सभी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा पूरा गाँव इकट्ठा हो गया जैसे गाँव में कोई उत्सव सा हो गया हो किसी को उम्मीद नहीं थी की मैं लोट कर आऊँगा. माता पिता दोनों गले लगकर बहुत रोएँ और बहुत नाराज़ भी हुए कम से कम खबर तो देता हमें …..वहाँ रह रहा हूँ कम से कम हमें तसल्ली हो जाती… हाँ माँ मेरे से गलती हों गई लेकिन माँ अब चिंता न कर तेरा बेटा एक बहुत बड़ा आदमी हो गया हैं .मैं आप सबको लेने आया हूँ माँ ,अपना आलीशान मकान कई गाड़ियाँ तू चल तो सही और पूरे गाँव के लोगों से यह कह कर आया आप अपने बच्चों को कम से कम १२वीं तक पढ़ाई करवां देना और मेरे इस पते पर भेज देना इनकी नौकरी की ज़िम्मेदारी मेरी,गाँव में जैसे ख़ुशी की लहर दौड़ गई , अपने पूरे परिवार के साथ गाँव से रवाना हो गया …. बहन और भाइयों व बूढ़े माँ बाप ने शहर में अपने भाई व अपने बेटे की तरक़्क़ी देख कर फुले नहीं समा रहे थे.
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