कभी तो एक दुआ कुबूल हो मेरी
बगैर किसी इबादत के।
वो भी जताए प्यार मुझ पर
बिना किसी शिकायत के ।
वो भी मुझे गले लगाए
बिना मेरी इजाजत के ।
मोहब्बत वो भी करे हमसे
बिना किसी मिलावट के ।
करे कभी वो भी हेरतगार हमे
हमारे ही इंतजार में,
बिना किसी शिकवे शिकायत के ।
वो भी तो महसूस करें,
वो भी तो जाने कैसे,
गुजरती हैं जिंदगी,
बिना किसी मुस्कुराहट के ।
कैसे जीया है पल पल हमने
उनकी झुठी चाहत के।
वो भी भटके दर ब दर
पल भर सुकून की राहत में ।
न जाने क्या क्या नहीं झेला हमने
उनकी मोहब्बत की साज़िश में।
प्रीत कौर प्रीती।
फगवाड़ा।