मेरे देश का हर सख्श आज परेशान सा क्यों लग रहा है।

सब कुछ होते हुए भी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिल रहा है ।
दो वक्त की रोटी के लिए हर इंसान लाचार लग रहा है।
चंद पैसों की खातिर कलेजे के टुकड़ों को विदेशों में भेजने को मजबूर हो रहा है।
खून इतना सफेद हो गया है कि ओलाद के होते हुए मां बाप को वृद्ध आश्रम में जाना पड़ रहा है।

हर रोज अखबारों की सुर्खियों में कोमल कलियों को हवस का शिकार बनाने की खबरें ना चाहते हुए भी पढ़ने को मजबूर हो रहा है।

हर जगह धरने,हड़तालें, मुजाहरे और जाम लग रहे है।

धर्म की आड़ में राजनीति का बोलबाला पैर पसार रहा है। हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई में बटवारा हो रहा है।

महंगाई ने इस कदर कमर तोड़ दी है कि मध्य वर्ग इंसान चैन की नींद नहीं सो पा रहा है..
आंख लगने पर वो भूखे बच्चों की कुरलाहट सुन रहा है।
आखिर कब?
कब खिलेगा?
हमारी उम्मीदों का सूर्य
कब हंसते दिखेंगे लोग
कब हर घर में रोजगार होगा
कब चैन की नींद ले पाएगा हर नौजवान……..

कमला शर्मा कौशल