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खामोशी के शब्द: संध्या जैन

सारे संबंध अब अर्थहीन हो गए हैं
खून के रिश्ते भी अब न्यून हो गए हैं
कौन कहता है कि रिश्ते टूटते नहीं
यह वह शहर है जहां पर सब सुनते हो गए

हमने भी पाले थे कुछ सपने मगर
ये सपने भी अब कहीं विलीन हो गए
कहने वह तो बहुत कुछ है मगर
सब सुनने वाले भी अब मोन हो गए हैं

शह और मात के खेल है यह सब
किसी को शह तू किसी को मात दे गए
मरना यूं तो एक ही बार है मगर
लोग कई बार मर मर के सो गए

गीत के बोल भी अबोल हो गए
खामोशी के शब्द ही अब बोल हो गए
कौन सुनता है किसी और की बात
अब तो बोलने वाले भी मजबूर हो गए
ढली हुई शाम भी कभी ना फिर
फिलहाल तो सुबह ही अब शाम हो गई
ढलती उम्र की इस ढलान पर
अपने ही पराए उसे अनमोल हो गए

रश्के जन्नत की खुशबूदार जमी पर खिले थे
चांद फूल जो चूर हो गए इसी ख्याल में
खुद हम भी तो किसी से कब से
न जाने क्यों बहुत दूर-दूर हो गए


संध्या जैन महक भिलाई

Daily Hukumnama Sahib

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