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पुनर्मिलन: नरेश कुमार खजूरिया

  • ☀ एक दिन मैं जागा
  • मेरे भीतर दिन जागा
  • जागने पर सूरज ने मेरा माथा चूमा
  • मेरे भीतर एक दिन प्यास जागी
  • आकाश दुखी हुआ मेघ अश्रु-धार रोये
  • मेरे भीतर एक नदी जागी नदी के साथ नाद जागा
  • मैं इतना बहा अनहद हो गया
  • मेरे भीतर हरियाली जागी
  • मैं वनस्पतियों में हंसा मेरे भीतर कवि जागा
  • मेरे भीतर जाग उठे वेदना के महाकाव्य
  • मैं जगा और नंगे पांव चला
  • उसके आगे आगे मेरे भीतर पृथ्वी जाग उठी
  • और उसके बाद वह सब जागा
  • जो चाहिए था जीवन को मैं सो गया
  • उठा तो मेरी काया
  • और थी मेरा नाम और था
  • मैं आग की गोद में सोया था जागा
  • तो पृथ्वी की गोद में था मैं जागा
  • स्मृति सोई रही
  • स्मृति में बस्ते थे कई जीवन
  • मुझे पृथ्वी देकर मेरी स्मृति छीन ली गई
  • एक वियोगन नंगे पांव मेरेे पीछे कूद पड़ी धरती
  • पर मुझे मेरी स्मृति सौंपने आई
  • उसे याद है सब मेरे भीतर सब सोया है
  • उसने कई रागनियां गाईं पर
  • उसके सुरों ने छुआ तक नहीं
  • मेरे सोये हुए अंश को पता नहीं
  • मेरे भीतर क्या क्या सो गया है
  • बहुत जगाने पर भी स्मृति लौटती नहीं
  • वह कहती है तुम्हारे हंसने भर से
  • जाग उठते थे सहस्र कमल नाग नाचने लगते थे
  • तेरी बांसुरी की धुन से तुम्हारे नेत्र
  • जिधर देख देते वसंत आ जाता
  • उस ओर तुम प्रेम में बास करते थे
  • करूणा तुम्हारी प्रिय थी
  • तुम फूलों के बाण रखते थे
  • इतने कोमल थे तुम
  • तितलियों के बैठने पर भी पड़ जाते थे निशान
  • तुम पर कुछ पाखंडी हुए
  • जिन्हें भस्म बहुत प्रिय थी
  • उनके पास न प्रेम था न करूणा
  • उन्होंने तुमे आग के हवाले कर दिया
  • और तुम्हारी भस्म से किया
  • स्वयं को और बलशाली
  • मैंने बहुत पुकारा तुम्हें
  • पुकारते- पुकारते सदियाँ बीत गईं
  • कई घाटियों को लांघ आई
  • तुम हो कि बोलते ही नहीं
  • कब बोलोगे कामदेव? ………..
  • नरेश कुमार खजूरिया डींगा अम्ब,कटली जम्मू कश्मीर मोब.07889736743

Daily Hukumnama Sahib

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