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जनरल डिब्बे मे रेल की यात्रा: शिवनाथ सिंह “शिव”

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जब जून की जालिम गरमी मा ,
रेलवे की यात्रा पड गइले ।
जब दुइ डिब्बा के पैसेन्जर ,
एक डिब्बा महियॉं घुस गइले ।।

का विपति बताई हम तुमसे ,
जस विपदा हम पर है परिगै ।
ऊपर का दम उपर साधे ,
नीचे का दम नीचे रहिगे ।।

यहि घम़ासान के बीच फसें ,
छोटे लरिका चिल्लाय रहे ।
मम्मी का दम बेदम होइगा ,
भैया जी उनहे चुपवाय रहे ।।

सब ओर मची अफरातफरी,
सब भागमभाग मचाये हैं ।
सीटन पर कतहू जगह नही ,
कुछ बाथरुम कब्जायें हैं ।।

यहि कसामसी के बीच फसें ,
हमहू डिब्बा में टिक गइले ।।
जब दुइ डिब्बा के पैसेन्जर ,
एक डिब्बा महियॉं घुस गइले ।।

जब जून की जालिम गरमी मा ,
रेलवे की यात्रा पड गइले ।।

2
हम कउनिउ तरह से खड़े भयेन,
थोड़ी सी जौन जगह पावा।।
इतने मे हमरी पीठी पर,
एक गटठर आय के टकरावा।।
हम समझा कछु आवा समान ,
पर वहिमा भैया निकल पडे़।
हम जब तक सोची का होइगा,
तब तक उइ भैया बोल पडे़।।

हमसे बोले जगहा छोडो ,
रुपया पचास दै आये हैं।
तब हिन तो हमका कुली राम,
वाया खिड़की पहुचायें हैं ।।

हम कहा कि तुम करिके के जुगाड़,
डिब्बा मा तो घुसि आये हो।
पर अन्दर कहू जगह नाही,
हमहू एक पैर टिकाये हो।।

अब धंसाधंसी मा बीच फंसे ,
उइ भैया संगमा पिल गइले।।
जब दुइ डिब्बा के पैसेन्जर ,
एक डिब्बा महिया घुस गइले ।।

जब जून की जालिम गरमी मा ,
रेलवे की यात्रा पड़़ गइले ।।

3
कउनेउ का गोड़ फंसा बीचे,
कोउ अपनो अंग बचाय रहा।
कोई अंग भंग चिल्लावत है,
कोई खड़ो खडो़ मुसकाय रहा।।

कउनउ है टाँगन बीच खड़ा,
कउनउ नीचे बर्राय रहा।
घुटना लड़ि रहे हैं घुटनन से,
कोउ दैया चिल्लाय रहा।।

जेहिका जहंवा पर जगह मिली,
खूब कसमसाय गरमाय रहा।

कोउ सांस लेत अति धीरे से,
कोउ सांसे नही निकाल रहा।।
बडि अजब गजब रेलम पेलम,
कोई अपनी नाक बचाय रहा।

हर तरफ शोर गुल मचा हवे ,
लरिका बच्चा चिल्लाय रहे।
गरमी से सब व्याकुल होइके,
बूढे़ जवान अकुलाय रहे।।

पंखन के बटन दाबि डाले,
एको पंखा न हवा दिहिन।
गरमी इतनी ज्यादा पड़िगै,
डिब्बै मा उल्टी दस्त करिन।।

यहि धक्कामुक्की के चक्कर मे,
कितनो चक्कर मा पड़ि गइले।
जब दुइ डिब्बा के पैसेंजेर ,
एक डिब्बा महियां घुस गइले।।

जब जून की जालिम गरमी मा ,
रेलवे की यात्रा पड़ि गइले।।
4
कुछ तो जमीन पर लेटे है ,
अपनी चददर का फैलाये ।
दुई बडी सीट के बीचे मा,
अपने लड़िकन का बैठाए ।।

लरिका बच्चा प्यासे होइगे,
पानी पानी चिल्लाय रहे ।
घर का पानी सब खतम भवा ,
नल की टोटी का निहार रहे।।

कउनउ टोंटी मा जल नाही,
पानी का टोंटा ऐसि भयो।
बम्बा का जल बोतलन मा भरि,
नकली वेन्डर खूब बेचीं रहयो।।

बाम्बे दिल्ली पूना से सब ,
भैया पटना का जाय रहे।
डिब्बा मा जगह मिला नाही ,
छत पर चढ़ि जगह बनाय रहे।।

राजू महेस मैकू छोटू,
अम्बाला से ये आय रहे।
ई सब बच्चन के संग बैठि,
अब जाय इलाहाबाद रहे।।

सोहन सुरेस लुधियाना के,
भटठन मा काम कराय रहे।
बाबू जी से छुटटी लइके,
घर जाय जहानाबाद रहे।।

लरिका बच्चा सब बैठे हैं,
सब कसामसी के बीच पड़े।
जिन्हिका कछु ठौर मिला नाहीं,
उइ द्वारपाल बनि हवें खड़े।।

जब धक्कामुक्की जोर मची,
कच्चे दिल वाले भग गइले।।
जब दुइ डिब्बा के पेैसेन्जर ,
एक डिब्बा महियां घुस गइले।।
जब जून की जालिम गरमी मा,
रेलवे की यात्रा पड़ि गइले।।
5
जब रेल चली कुछ हवा मिली,
चेहरन पर फिर कुछ रंग आवा ।
इतने मा काला कोट पहिन ,
अंदर एक टी. टी. ई. धुसि आवा।।

अब खूब टिकट की चेकिंग भयी ,
गांधी के बन्दर पकडि गये।
कुछ तो रुपया दे छूटि गये ,
बाकी बेचारे जेहल गये।।

हमहू फंसि गये मुसीबत माँ ,
जब हमरो टिकट मिला नाही।
हड़बड़ी में नीचे चला गवा,
जहां खूब मची आवाजाही।।

यहि संकठ की वहि बेला में,
हमका भगवान नजर अइले।
जब दुइ डिब्बा के पेैसेन्जर ,
एक डिब्बा महियां घुस गइले।।
जब जून की जालिम गरमी मा,
रेलवे की यात्रा पड़ि गइले।।
6

अब हमरे टिकट का नम्बर था,
जेबन मा देखा न पावा।
हम तो फिर इतना घबड़ाये,
अब जेहले का नम्बर आवा।।

हम ढूढन लागे टिकट कहूं,
वह नजर न आवे बीचे मा।
कुछ छोट छोट लरिका भैया,
जो ठंसे भये हैं नीचे मा ।।

इतने मा एक बच्चा बोला,
यह कहिका नीचे टिकट पड़ा।
हम झटापटट पहुंचे तुरंत,
देखें तो नीचे सना पड़ा ।।

हम दीन उठाय के तुरत टिकट,
टी.टी.ई. खूब जोर बिगड़ गइले।
उई लरिका हमें बचाय लिहिन,
नहि हमहू जेल पहंुच गइले ।।

जब दुइ डिब्बा के पेसेन्जर ,
एक डिब्बा महियां घुस गइले।।
जब जून की जालिम गरमी मा,
रेलवे की यात्रा पड़ि गइले।।

7

यह विनय मेरी मंत्री जी से,
मंत्री जी ध्यान जरा देना ।
ऐ डिब्बा वाले भैययन का ,
दुइ डिब्बा और बढ़ा देना।।

इनहू का सुविधा मिले खूब,
डिब्बे मा साबित चढ़ि जावें।
छत छोड़ि बीर नीचे आवें,
सीटन पर बैठि नजर आवें।।

ई गरीब रथ के साथ साथ,
जनरल की बोगी बढ़वायें।
भैययन का जिहिसे जगह मिले,
वे भी यात्रा में सुख पावे ।

तुम्हूका देइहैं ऐ आषीष,
जब इनका कुछ आराम मिली ।
अगला चुनाव जब आई ‘शिव‘
पटना, दिल्ली का मुकाम मिली ।।
फिरि कोउ न छेकिहें बाथ रुम,
जब जनरल सीटें मिल जइले।।
जब दुइ डिब्बा के पैसेन्जर ,
एक डिब्बा महियां घुस गइले।।

जब जून की जालिम गरमी मा,
रेलवे की यात्रा पड़ि गइले।।

शिवनाथ सिंह “शिव”
रायबरेली
9450944945

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