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बूंद सारी सीत है: !!विह्वल!!

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जो गुनाहों में गिने जाते रहे अब रीति है!
लोग कहते हैं बुरा,पर वो कहें की प्रीति है!
ज़िन्दगी के मायने तन्हां हुआ हर सोंच में!
हार तन्हां ज़िन्दगी है वो समझते जीत है!
एक ही परिवार में हैं साथ तीनों पीढियां!
घर सभी के वास्ते एक छत और इक भीत ( दीवार)है!
बंद कमरे में गुज़रती ज़िन्दगी हो अजनबी!
होंठ अपने ,बात अपनी ,और अपनी गीत है!
मीत की परछाइयों में हर घरी उलझा सा मन!
बात उसकी ,सोंच उसकी ख्वाब में भी मीत है!!
रंग हैं उमंग लेकिन डर कहीं धोके की भी!
प्यास है बारिश भी लेकिन बूंद सारी सीत है!! विह्वल!!

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