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कभी दरिया के किनारे अकेली चलूँ: डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

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कभी दरिया के किनारे अकेली चलूँ
तुम्हारे हाथों का स्पर्श महसूस न करूँ
नर्म रेत पर बैठकर
लहरों में तेरी तस्वीर न निहारूँ
दरिया की रवानी से
तुम्हारे लिए दुआ न मांगूँ
ऐसा कैसे हो सकता है

हम मधुबन से गुज़रें
फ़ूलों को चूमें
महकी लताओं से खेलें
और बिखरती ख़ुशबू हमारी साँसों में न समाये
ऐसा कैसे हो सकता है

हम मुहब्बत का राज़ हवाओं से कहें
और वह पेड़ों को न बताएं
बात जंगल में न फैले
ऐसा कैसे हो सकता है

हम इश्क़ के घने जंगल से गुज़रें
और राह न भटकें
रुसवाई की कंटीली बेलों का कांटा
हमारे दामन से न उलझे
ऐसा कैसे हो सकता है

झील के पास पीले पत्तों पर बैठकर
ठहरे पानी में तेरी यादों के कंकड़ न फेंकूँ
और गोल गोल दायरे न बनाऊँ
ऐसा कैसे हो सकता है

ढलते सूरज की लालिमा को देखकर
सारा दिन उसके सफ़र की थकन को महसूस न करूँ
नई उम्मीद के साथ
कल उसके उगने का इंतज़ार न करूँ
ऐसा कैसे हो सकता है

फूलों को झरता देखकर
पीले पत्तों को देखकर
शाखों के लिए बहारों की दुआ न मांगूँ
ऐसा कैसे हो सकता है

मन के जंगल से
बहारों का क़ाफ़िला गुज़रे
नई सुबह की डोली उतरे
तो फिर स्मृतियों की रजनीगंधा
यादों का गुलमोहर न महके
ऐसा कैसे हो सकता है

शाम ढले
नर्म चाँदनी खिले
कोई उसे बाँहों में भरकर
यह कहे – यह चाँदनी सिर्फ़ मेरी है
ऐसा कैसे हो सकता है

हल्की-हल्की बारिश हो
और बादल गहरे-गहरे हों
यादों की बदली के कुछ टुकड़े
मेरे दिल पर न ठहरें
और तुम मेरे दिल पर न छाओ
ऐसा कैसे हो सकता है

जुदाई के रेगिस्तान से गुज़रें
आँखों में हिज्र की रेत न पड़े
भटकते भटकते पैरों में छाले न पड़ें
ऐसा कैसे हो सकता है

सावन की पहली बारिश हो
शिद्दत से तेरे संग बीती हुई
मीठी मुलाक़ातों को न याद करूँ
तेरे संग भीगने के लिये जज़्बात न उमड़े
दिल में अजीब सी कशिश न हो
ऐसा कैसे हो सकता है

रीडिंग रूम में आँखें बंद किए बैठूँ
नई कविता के बारे में सोचूँ
अनुभवों की पोटली से
नये नये शब्दों की माला पिरोते हुए
कविता को सजाते हुए
तुम्हारे दिये हुए टिप्स याद न आयें
ऐसा कैसे हो सकता है

जब भी मैं कोई कविता पदूँ या फिर लिखूँ
तुम्हारे नाम का पहला शब्द आये
और तुम्हारा ख़्याल न आये
ऐसा कैसे हो सकता है

हम चाहे मन की खिड़कियों पर पर्दे लगा दें
खुद को दीवारों में क़ैद कर लें
घर के दरवाज़े भी बंद कर लें
तुम्हारी यादों की फुहारें
मेरे अहसास की कलियों को न भिगोयें
ऐसा कैसे हो सकता है

हरे हरे पहाड़ों पर
ऊँचे उड़ते पंक्षीयों को देखूँ
कल्पनाओं के पंख लगाकर
महकी हवाओं का आँचल पकड़कर
‘फ़लक’ को छूने की तमन्ना न जागे
ऐसा कैसे हो सकता है ।
डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

परिचय: डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

   जन्म स्थान -एवं प्रारम्भिक शिक्षा: - शाहजहांँपुर ( उत्तर प्रदेश)

⭐ शिक्षा- B.Sc ,M.A.English, B.Ed, M.A.Hindi ,M.Ed, PHD
शोधकार्य (अटल बिहारी वाजपेयी के काव्य में सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना)

⭐ हिन्दी मौलिक काव्य संग्रह – चुप का गीत (2013), रेत पर रंगोली (2018) इश्क समंदर तो नहीं (2022)
अनुवादित पंजाबी काव्य संग्रह- मरजाणियाँ (2017)
अनुवादित अंग्रेजी काव्य संग्रह- A portrait Sans Frame (2021) अठवें रंग दी तलाश (मौलिक पंजाबी काव्य संग्रह,2021)

⭐️राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने के साथ-साथ मुशायरों, टेलीविजन,आकाशवाणी के कवि सम्मेलन में शामिल होना लगातार जारी है। कई शोध पत्र एवं पुस्तक समीक्षायें प्रतिष्ठित अखबारों में प्रकाशित होती रहती हैं।

⭐”कविता कथा कारवाँ ” (रजि)साहित्यिक संस्था की प्रधान
कथा कारवाँ पब्लिकेशनस(रजि),लुधियाना(पंजाब) की संचालिका

⭐सम्मान
पंजाब गौरव, सोझन्ती कवयित्री(2018), अमृता प्रीतम सम्मान, गोल्ड मैडल(2019),राज्य कवि उदय भानू हंस(2019 हरियाणा से),श्री शारदा शताब्दी सम्मान 2021, जिला स्तरीय सम्मान(disstt.award(2021,2023),कबीर कोहिनूर सम्मान (2023),राष्ट्र गौरव सम्मान(2023)साहित्य रत्न सम्मान(2023)प्रमुख हैं

⭐स्थाई पता—
मकान न.-11सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब
पिन – 141003

⭐फोन नं – 9646863733

⭐ई मेल- jaspreetkaurfalak@gmail.com

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