बिना न्याय के सपन अधूरे।
अवसर बिनु भव पार कहां!
धर्म धर्म बस चिल्लाने से!
मिलता है उद्धार कहां!
मानव जीवन बहुत सरल है!
दो सांसों का जीवन हैं!
इसको जितना कठिन करेंगे!
पायें फिर सुख सार कहां!
ईश्वर सिर्फ कर्म गिनता है!
भला बुरा पैमाना हैं!
समदर्शी है प्रभु की कृपा।
वह करता है भेद कहां!!
धन बुद्धि स्वास्थ्य हमारी करनी!
ईश्वर इसे नहीं देता!
इसकी चाहत भजन करें फिर,
होता बेड़ा पार कहां!! विह्वल!!
सुरेन्द्र कुमार ” विह्वल”