झूठ की बंजर जमीं पर सत्य बोने के लिए
आसां है बहुत तलवार से दुनियाँ को जीतना
प्रेम की ढाल चाहिए बुद्ध होने के लिए
देख कर दुःख दर्द दुनियाँ का आह निकले अगर
दिल में हो दर्द अपने भी मानवता के लिए मगर
छोड़ कर सब राज पाट जंगल जाने के लिए
सत्य की मशाल चाहिए बुद्ध होने के लिए
शांति की तलाश में भटक रही है सारी कायनात
धरती चाँद सूर्य तारामंडल आकाशगंगा सभी
मानव भी तो तड़प रहा है पार ब्रह्म पाने के लिए
बस विश्राम ही तो चाहिए बुद्ध होने के लिए
देख कर कोई फूल खिलता चेहरा तुम्हारा खिल पड़े
मुस्कुराहटों में किसी की तेरी ख़ुशी भी मिल पड़े
भूल कर अपने ग़मों को दूसरे का गम मिटाने के लिए
धैर्य का पात्र चाहिए बुद्ध होने के लिए
भिक्षा लेकर खा रहा है ‘ग़ुलाम’ सदियों से यहाँ
लेकिन उसको अब तलक भी चैन कोई है कहाँ
मन की मुक्ति चाहिए आज़ाद होने के लिए
नियम का दंड चाहिए बुद्ध होने के लिए
हरविंदर सिंह ग़ुला