चल रहा हूँ राह में हूँ मैं मुसाफिर हूँ
इबादत में हूँ पनाह में हूँ मैं मुसाफिर हूँ
ठोकरे है राह में तो क्या हुआ ऐ ज़िन्दगी
इसकी भी अपनी लज़ते है मैं मुसाफिर हूँ
क्यों बहाउ अश्क़ आखिर मेरा क्या गया
जो मिला तक़दीर से जो गया तकदीर से
गिनते गिनते मील पत्थर भूल बैठा हूँ सभी
कितने ठिकाने काफिले है मैं मुसाफिर हूँ
आज रस्ते भी नए है और साथी भी नए
जाम साकी भी नए है और नई है महफिले
भूले विसरों की भी यादें ताज़ा हो जाती है कभी
कुछ शिकवे भी है शिकायतें है मैं मुसाफिर हूँ
मंज़िलों से मंज़िलों का अब सफर होता है तय
है मुनाफा ही मुनाफा लूट का न कोई भय
अंतर्मन का ये सफर है क्या बताऊ दोस्तों
मैं अपनी इबादत गाह में हूँ मैं मुसाफिर हूँ
कौन कहता है ग़ुलामों को न होगा नसीब
दर परवर्दिगार का जो है सबसे अज़ीज़
मुझको अपने साथ ले लो ऐ मुसाफिर दोस्तों
भटका अब तक राह में हूँ मैं मुसाफिर हूँ : ग़ुलाम